नई दिल्ली.ईश्वर की अद्भुत लीला है जब 15 वर्षीय भाई ने संत घोषणा में पढ़ा पहला पाठ. वेटिकन सिटी का सेंट पीटर स्क्वायर हमेशा से ईसाई धर्म की आस्था और आध्यात्मिकता का ध्रुव रहा है.वही चौक, जो सदियों से संत घोषणाओं, पापाओं के आशीर्वाद और विश्व-भर से आए श्रद्धालुओं की प्रार्थनाओं का साक्षी है, 2025 की इस ऐतिहासिक घड़ी में एक और भावुक अध्याय का हिस्सा बना.
धन्य कार्लो एक्यूटिस को संत घोषित करने की इस विशेष रस्म में जब उनके छोटे भाई मिशेल एक्यूटिस ने सुसमाचार का पहला पाठ पढ़ा, तो मानो पूरा माहौल ईश्वरीय करुणा से भर उठा. यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि समय, जीवन और मृत्यु को जोड़ने वाली ईश्वर की गहनतम योजना का प्रत्यक्ष दर्शन था.
एक भाई, जिससे कभी मुलाकात नहीं हुई
कार्लो एक्यूटिस का जन्म 1991 में हुआ और उन्होंने 2006 में मात्र 15 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन त्याग दिया.मृत्यु के मात्र चार वर्ष बाद, 2010 में उनके छोटे भाई-बहन मिशेल और फ्रांसेस्का का जन्म हुआ.विडंबना यह रही कि मिशेल ने अपने बड़े भाई को कभी देखा तक नहीं, लेकिन नियति ने उसे ऐसा अवसर दिया, जिससे वह अपने भाई की संत घोषणा का सहभागी बना.
आज जब मिशेल स्वयं 15 वर्ष का है—
उसकी आयु में जिस उम्र में उसका भाई स्वर्ग चला गया था—तो यह पल और भी रहस्यमय और मार्मिक हो गया.एक भाई जिसने अपने बड़े भाई को कभी जाना नहीं, वही भाई आज पूरे विश्व के सामने खड़ा होकर उसके नाम से जुड़े सुसमाचार का पाठ पढ़ रहा था.यह दृश्य श्रद्धालुओं की आँखें नम कर गया.
संतत्व की गवाही और ईश्वर का तोहफ़ा
संत घोषित किया जाना केवल किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आध्यात्मिकता की पहचान नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत है.कार्लो एक्यूटिस, जिसने इंटरनेट और आधुनिक तकनीक को सुसमाचार प्रचार का साधन बनाया, आज डिजिटल युग के युवाओं के लिए आदर्श बन चुका है.
परंतु सबसे गहरा संदेश इस समारोह में मिशेल की उपस्थिति ने दिया—संत कार्लो का जीवन केवल अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य में भी जीवित है.यह मानो ईश्वर का तोहफ़ा था, जिसने परिवार को दो पीढ़ियों के बीच एक अद्भुत सेतु में बदल दिया.
भावनाओं से भरा एक क्षण
जब मिशेल ने गहन भाव से पहला पाठ पढ़ा, तो वहां मौजूद हजारों श्रद्धालुओं के हृदय में यह बात गूँज उठी कि संतत्व की राह केवल ईश्वर की कृपा से ही प्रशस्त होती है.एक 15 वर्षीय किशोर के मुख से निकले वे शब्द उस भाई की पवित्र स्मृति को साकार कर रहे थे, जिसने 15 की ही उम्र में अपने जीवन को ईश्वर को समर्पित कर दिया.
यह दृश्य केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक गवाही था—कि संतों का जीवन समय और मृत्यु से परे होता है.कार्लो एक्यूटिस आज संत बन गए, पर उनकी आत्मा, उनकी गवाही और उनका प्रेम उसी क्षण में सजीव हो उठा जब उनका छोटा भाई, उसी उम्र में खड़ा होकर, सुसमाचार पढ़ रहा था.
यह क्षण निश्चय ही ईश्वरीय योजना का दिव्य चमत्कार था—जो आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि ईश्वर का प्रेम और संतों की गवाही कभी समाप्त नहीं होती, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी और भी गहरी होती जाती है.
आलोक कुमार
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