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जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) का पटना में 5वां राज्य सम्मेलन संपन्न
* सम्मेलन में वक्ताओं ने मौजूदा चुनौतियां और जन संगठनों की भूमिका पर गहन चिंतन करते हुए अपने विचार रखे
पटना. जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) का पांचवा राज्य सम्मेलन पटना के बिहार वालंटियर हेल्थ एसोसिएशन के सभागार में हुआ. इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध समाजसेवी मेधा पाटकर ने इजरायल-हमास युद्ध को तत्काल रोक कर शांति स्थापित करने की अपील की. भारत सदा अहिंसा का पक्षधर रहा है इसलिए भारतीय जनता और भारत की सरकार को युद्ध रोकने के पक्ष में भूमिका लेनी चाहिए.
वर्तमान विकास के मॉडल को मनुष्य विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा, परिवर्तन के नाम पर हो रहे विकास से अगर मानव जीवन और प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित नहीं हैं तो इस तरह का परिवर्तन हमें अस्वीकार है. खेतिहर, पशुपालन, मछुआरे, वनवासी, जल, जंगल, जमीन के असली मालिक हैं. इनके स्वामित्व और अधिकार को खारिज करने वाली राजनीति और कानून हमें नाकबूल है. अमेरिका और यूरोप में हजारों बाँधों को तोड़ कर नदियों को आजाद किया गया.
पश्चिमी विकास मॉडल का अंधाधुंध अनुसरण करने वाली भारतीय राज्य व्यवस्था को बांध विरोधी नीति से सबक लेने की जरूरत है. सरकार की अमानवीय विकास मॉडल से भारत के गाँव तो तबाह हुए ही हैं, महानगरों में स्लम बस्तियों की जिंदगी हराम हुई है. मुंबई जैसे महानगर में 60 प्रतिशत आबादी झुग्गी झोपड़ी में रहती है, जहां जीवन की मूलभूत सुविधाएं भी मौजूद नहीं है. पूंजीवादी विकास मॉडल का सबसे शोषणकारी पहलू है कि जहां गरीबों को घर बनाने के लिए सवा लाख रुपया मिलता है, वहीं अंबानी का पांच हजार करोड़ का महल है.
संघर्ष के मद्देनजर, वर्ष 2022-23 में, जातिवाद, धर्मवाद को खत्म कर सभी मुद्दों को घोषणापत्र में डाल कर यात्राएं निकाली गईं, जिसका भाजपा को छोड़ कर सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया. देश की सीमा से लगे सभी सरकारी जमीन को निजी कंपनियों को हाथ में सौंपने की साजिश चल रही है, जहां होटल, मॉल, पर्यटन स्थल, इत्यादि बनाने की योजना है. इस षड्यंत्र को जन आंदोलन से ही रोका जा सकता है. नर्मदा घाटी आंदोलन ने 38 साल में 50 हजार लोगों का पूर्णवास किया.
आलोक कुमार
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