शनिवार, 19 अप्रैल 2025

अब उन परिवारों के लिए नीतू दीदी बन गई

 मैं अकेला ही चला था ज़ानिब- ए- मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया...कोई हमलोगों को पूछने वाला नहीं था, घृणा की दृष्टि से लोग हमलोगों को देखते थे। कोई हमलोगों को काम नहीं देता था, लेकिन जब से आप यहां आना शुरू की तब से कई लोग, कई संस्था के सदस्य हमलोगों के बीच आते है, हमारी समस्या पूछते है और हमारी सहायता करते है.यह सब आपके कारण हुआ है, यह सब आपकी देन है....  चनपटिया .पश्चिम चंपारण जिले में चनपटिया प्रखंड है.यह चनपटिया प्रखंड के कुमारबाग में अवस्थित है.यहां पर कुष्ठ कॉलोनी है.यहां पर करीब 14-15 कुष्ठ परिवार अपने बाल- बच्चे के साथ रहते है.कुल मिलाकर उनका 43- 44 सदस्यों की  बस्ती है. जिसमें कुछ परिवार के सदस्य कुष्ठ रोग से ग्रसित है और कुछ बिल्कुल सामान्य स्थिति में है.

    समाजसेवी शिक्षिका मेरी आडलिन (नीतू सिंह) कहती हैं कि मैं विगत 14-15 वर्षों से इस बस्ती में जाकर लोगों से मिलती रहती हूं. मेरा प्रयास रहता है उन्हें समाज के मुख्य धारा से जोड़ें, उनके परिवार के बच्चे शिक्षित हों.ये सभी बच्चे व लोग शिक्षा और स्वच्छता को अपनाकर आगे बढ़ें.उनके परिवारों के बच्चे पढ़े और साफ- सुथरा रहें. 

       आज भी जब याद करती हूं कि वर्षों पहले जब पहली बार इस बस्ती में गई थी, तो यहां की स्थिति देखकर मानसिक रूप से काफी परेशान हुई थी.इस बस्ती में सफाई नाम की चीज नहीं थी, चारों तरफ गंदगी का अंबार,  घर के पास जल - जमाव, बदबू, गंदगी भरा नाली, कुष्ठ रोग से ग्रसित रोगी वृद्ध- वृद्धा और बदन पर बिना कपड़ें के छोटे- छोटे बच्चे.तीन पहिये के लकड़ी पर बैठकर भीख मांगने जाते कुष्ठ परिवार के कुछ सदस्य.

    मेरे लिए यह दृश्य मन को बेचैन, परेशान करने वाली थी. मैं इनके दुःख को देखकर जितनी दुखी थी, उससे ज्यादा यहां की कुष्ठ रोगियों की दशा, अशिक्षा और गंदगी को देखकर आहत थी.बस यही तो वह समय था, जब दिल ने, मन से कहा -इक छोटी सी शुरुआत करते है, उन लोगों के लिए कुछ करते है.

         उस दिन से जब भी समय मिलता, मैं इस बस्ती में जाने लगी. मेरे बार- बार यहां जाने से अब उनलोगों के लिए अपरिचित नहीं थी, धीरे- धीरे ये लोग मेरी बात सुनने लगें और मेरा कहना मानने लगे. पहले उनलोगों के लिए मिस, मैडम थी, लेकिन अब उन परिवारों के लिए नीतू दीदी बन गई हूं. ये मुझे नीतू दीदी कहकर बुलाने लगे. मुझसे जो भी सहायता बन पड़ती है, उसमें मेरे परिवार के सदस्य, उनके लिए किया करते हैं. अक्सर अपने घर के बच्चों का जन्मदिन, पर्व त्यौहार के अवसर पर उनके बीच परिवार के साथ पहुँच जाती और खुशियां इनके साथ सांझा करती.मेरे घर के बच्चे भी इनके साथ केक काटकर जन्मदिन मनाते, मिठाईयां, खिलौने बांटते और एक पौधा जरूर लगाते, अपनी खुशियां बस्ती के बच्चों के साथ सांझा करते, कविता कहानी सुनाते और समय बिताते.

        एक तरफ वहां के बच्चों को पढ़ाई की सामग्री उपलब्ध कराती, समय देकर उन्हें पढ़ाती, कविता आदि सिखाती, साफ- सफाई के बारे में बताती, वही दूसरी तरफ सभी परिवारों को समय- समय पर खाद्य सामग्री,  कपड़ें, कम्बल के साथ आर्थिक मदद देती रहती.स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए जल- जमाव, नाली आदि की सफाई करवाती.

      नीतू सिंह कहती कि  मुझे खुशी हो रही है कि इस बस्ती के लोगों में खूब जागरूकता आई है और वे अपनी बस्ती को साफ रखने लगे है.अपने बच्चों को पढ़ाने लगे है और स्वयं काम-काज करने लगे है. यहां की महिलाएं बच्चों को, घरों आस पास के जगह को स्वच्छ रखने लगी है.

       कुमारबाग निवासी एक युवा है- विक्रम कुमार.उस विक्रम की जितनी भी तारीफ करूँ कम है.विक्रम इस बस्ती के बच्चों को प्रतिदिन पढ़ाने का काम करते है. गर्व है ऐसे युवा पर, जो निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते है. नीतू कहती है कि मैं अक्सर विक्रम से उनलोगों के बारे में पूछती रहती हूँ और जब भी यहां जाती हूँ विक्रम के साथ बस्ती के लोगों की समस्याओं, परेशानियों को पता करती हूं और उसका हल निकालने का प्रयास करती हूं.

          इस कुष्ठ बस्ती के प्रधान है- भोला गिरी हैं. बस्ती के लोग उनकी इज्जत करते है, उनकी बातों को मानते है,  साथ ही कोई भी निर्णय हो ये लोग एक साथ मिलकर करते है. भोला जी इस बस्ती की लोगों की अगुवाई करते है.यहाँ के लोगों के लिए जब भी कोई जरूरत होती है, भोला जी मुझसे संपर्क करते है, मुझे बताते है और हमलोग मिलकर इसे हरसंभव पूरा करने का प्रयास करते है. हमलोगों ने मिलकर अपनी प्रयास से यहां पर बस्ती में बिजली की व्यवस्था, चापाकल की व्यवस्था किया.

           जो कुष्ठ बस्ती समाज से बिल्कुल अलग-थलक, अभिवंचित था,  दूसरे लोग इस कुष्ठ बस्ती में कभी जाते नहीं थे, यहां के रोगियों के दुःख दर्द से अनभिज्ञ थे, इनसे मिलते, बोलते नहीं थे. उनकी बीमारी की वजह से इनसे दूर रहते थे.अब यहां बहुत सारे लोग, बहुत संस्था आकर इनकी सहायता करते है.

      नीतू कहती है कि मैं आभार व्यक्त करती हूं उन सभी मीडिया का जिन्होंने कुष्ठ बस्ती में मेरे द्वारा किये जा रहे कार्यों को काफी प्रमुखता से कई बार प्रकाशित किया है.साथ ही सोशल मीडिया पर डाले गए मेरे पोस्ट को देखकर कई संस्था, कई लोग मुझे फोन करके पूछते है नीतू जी यह कुष्ठ बस्ती कहाँ है, हमलोग वहाँ के लिए कुछ करना चाहते है.कुछ लोग, कुछ संस्था मेरे माध्यम से और कुछ लोग स्वयं आकर बस्ती के लोगों की सहायता करने लगे.

          इनर व्हील क्लब, मारवाड़ी महिला समिति, यूथ क्लब जैसी कई संस्था के सदस्य एवं अन्य कई संस्था के सदस्य यहां आकर लोगों की मदद करते है. बच्चों की पढ़ाई, शादी ब्याह, बस्ती के लिए आवश्यक सामग्री आदि देते है.

         विगत कुछ महीनों से मैं व्यक्तिगत कारण, अस्वस्थता की वजह से बस्ती में नहीं जा सकी थी. लेकिन आज जब मैं वहां गई तो लोगों का वही प्यार और सम्मान मेरे प्रति था.थोड़ा दुःख हुआ यह देखकर कि 15 परिवारों में से आज मात्र 6 ही परिवार और उनके बच्चे है.कुछ लोग ईश्वर की शरण में चले गए है.कुछ कमाने बाहर चले गए है.

     आज मेरे साथ चुहड़ी कैथोलिक युवा संघ (Youth club chuhari) के सदस्य इस बस्ती में गए और और गुड फ्राइडे के अवसर पर बच्चों के बीच कॉपी, पेंसिल, रबर, कटर, बिस्किट, केक, मिठाई आदि बांटे और बस्ती के सभी परिवारों को सुखा खाद्य सामग्री चावल, आटा, दाल, दूध आदि दिये  साथ ही सभी परिवारों को कपड़ें आदि प्रदान किये.अच्छा लगा कि आज के युवा पढ़ाई- लिखाई के साथ समाजसेवा में भी रुचि ले रहे है.

        दिल को छू गई बस्ती के प्रधान भोला गिरी और युवा विक्रम की बातें - दीदी हमलोगों के कुष्ठ बस्ती में पहले कोई नहीं आता था, कोई हमलोगों को पूछने वाला नहीं था, घृणा की दृष्टि से लोग हमलोगों को देखते थे.कोई हमलोगों को काम नहीं देता था, लेकिन जब से आप यहां आना शुरू की तब से कई लोग, कई संस्था के सदस्य हमलोगों के बीच आते है, हमारी समस्या पूछते है और हमारी सहायता करते है.यह सब आपके कारण हुआ है, यह सब आपकी देन है.

        वह कहती है की मैं नहीं जानती कि मेरी वजह से समाज के तमाम लोगों को इस बस्ती की जानकारी हुई, आज इनकी सहायता के लिए दूर-दूर से कई लोग आते है। मैं इन लोगों की सहायता के लिए कारण बनी कि नहीं, यह मुझे पता नहीं.मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं आज 14-15 साल पहले अगर मैं इनलोगों से नहीं मिलती, इनकी स्थिति देखकर अपनी दिल की आवाज को नहीं सुनती, तो शायद कुष्ठ बस्ती के इन लोगों की सेवा से वंचित रह जाती.

आलोक कुमार

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