संसद पर हमला: शहादत की अमर विरासत
नई दिल्ली.13 दिसंबर 2001 का दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का एक अत्यंत संवेदनशील और निर्णायक अध्याय है. इसी दिन आतंकवादियों ने देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था—संसद—पर हमला कर भारत की संप्रभुता को चुनौती देने का दुस्साहस किया। किंतु उनके मंसूबों को हमारे वीर सुरक्षाकर्मियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर विफल कर दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्रियों तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा दी गई श्रद्धांजलि यह दर्शाती है कि राष्ट्र आज भी उन शहीदों के बलिदान को एकजुट होकर नमन करता है.यह केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि उस कर्तव्यबोध की पुनः स्मृति है, जिसने देश को एक अडिग सुरक्षा कवच प्रदान किया.
संसद की रक्षा करते हुए शहीद हुए जवानों का साहस, सतर्कता और कर्तव्यनिष्ठा आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है.उनका बलिदान यह संदेश देता है कि लोकतंत्र की रक्षा केवल शब्दों से नहीं, बल्कि संकल्प और त्याग से होती है.
आज जब आतंकवाद नए-नए रूपों में वैश्विक चुनौती बना हुआ है, तब 13 दिसंबर 2001 के शहीद हमें सतत सजग रहने और राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाए रखने की सीख देते हैं.देश उन वीरों और उनके परिवारों का सदा ऋणी रहेगा। उनका बलिदान अमर है और भारत की राष्ट्रीय चेतना में सदैव जीवित रहेगा.
आलोक कुमार
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